राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भारतीय जनता पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं की तरह नरेन्द्र मोदी की जो विचारधारा विकसित हुई है, उसके तहत जिनके प्रति सर्वाधिक नफ़रत करना सिखाया गया है, उनमें महात्मा गांधी तथा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर रहे हैं जिनकी सोमवार को देश भर में जयंती मनाई गई। वैसे तो पीएम होने के नाते उन्हें उन सभी राष्ट्र निर्माताओं को उनके जीवन की महत्वपूर्ण तिथियों पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने होते हैं क्योंकि वे जिस पद पर आसीन हैं, यह शिष्टाचार उनके कर्तव्य निर्वहन के अंतर्गत होता है- फिर चाहे उन महामानवों के विचारों से उनकी पटरी बैठे या न बैठे। समझदार तो वे होते हैं जो विपरीत विचारों की शख्सियतों को माल्यार्पण आदि कर अपने उत्तरदायित्व की खानापूरी कर लेते हैं। मोदीजी ने बाबासाहेब की 135वीं जयंती पर उनके योगदान स्वरूप जो बातें कहीं, उसमें विरोधाभासों व विसंगतियों की भरमार थी-हमेशा की भांति। यह बात एक बार फिर से यह साबित हुई कि मोदी हर अवसर को विपक्ष, खासकर कांग्रेस को कोसने तथा खुद की वाहवाही करने से ज्यादा कुछ नहीं मानते, जो हास्यास्पद है, दुर्भाग्यजनक भी। प्रधानमंत्री पद की गरिमा व प्रतिष्ठा के प्रतिकूल तो है ही। वैसे यह मोदी के लिये बड़ी बात नहीं है।
सोमवार की सुबह मोदी संसद के भीतर श्रद्धांजलि का औपचारिक कार्यक्रम पूरा करने के बाद, जिसमें तमाम प्रमुख शख्सियतें मौजूद थीं, हरियाणा के हिसार पहुंच गये जहां इस अवसर पर एक भव्य आयोजन किया गया था। अपनी चिर-परिचित शैली में प्रधानमंत्री ने इस शहर के साथ अपने पुराने सम्बन्धों का ज़िक्र किया। उन्होंने अंबेडकर के जीवन-संघर्ष का उल्लेख करते हुए बतलाया 'बाबासाहेब का संदेश ही उनकी 11 वर्षीय सरकार की यात्रा का प्रेरणा-स्तंभ है'। अंबेडकर के प्रति अपनी कटिबद्धता को नई ऊंचाइयों पर ले जाते हुए पीएम ने दावा किया कि 'उनकी सरकार का हर दिन, हर फैसला, हर नीति डॉ. अंबेडकर को समर्पित रहा।' वंचितों, पीड़ितों, शोषितों, गरीबों, आदिवासियों, महिलाओं के जीवन में बदलाव लाकर उनके सपनों को पूरा करना उन्होंने अपनी सरकार का मकसद बतलाते हुए कहा कि उनका निरंतर व तेज विकास ही भाजपा सरकार का मंत्र है। चूंकि सोमवार को ही हिसार-अयोध्या हवाई सेवा शुरु हुई, तो मोदी ने अपने उस वादे का ज़िक्र किया कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज में उड़ेगा। उनका दावा था कि देश में आज यह होता हुआ सब देख रहे हैं।
इस अवसर पर उन्होंने कहा-'जब तक बाबासाहेब जीवित थे, कांग्रेस ने उन्हें अपमानित किया। दो बार चुनाव हरवाया तथा उनकी यादें मिटाने की कोशिशें कीं।' मोदी के अनुसार कांग्रेस अंबेडकर के विचारों को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहती थी। पीएम ने डॉ. अंबेडकर को संविधान का संरक्षक और कांग्रेस को उसका भक्षक बतलाया। कांग्रेस के प्रति अपनी भड़ास को निचले स्तर तक ले जाते हुए मोदी ने कहा कि 'कांग्रेस ने अनुसूचित जातियों, अनु. जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों को हमेशा दोयम दर्जे का नागरिक समझा। उनके मुताबिक कांग्रेसी नेताओं के घरों में स्विमिंग पूल होते थे तथा गांवों में प्रति सैकड़ा केवल 16 घरों में ही पाइप से पानी पहुंचता था। इससे ये वर्ग ही सबसे ज्यादा प्रभावित थे।
वक्फ़ कानून को लेकर भी मोदी कांग्रेस पर बरसे तथा इसे 'कट्टरपंथियों को खुश करने का साधन' बतलाया जबकि बाकी समाज बेहाल, अशिक्षित व गरीब रहा। प्रधानमंत्री ने 'कांग्रेस की कुनीति का सबसे बड़ा प्रमाण वक्फ कानून' बतलाया। अपने निशाने पर उन्होंने कर्नाटक सरकार को भी लिया व आरोप लगाया कि उसने अनु. जाति-जनजाति और ओबीसी के अधिकार छीनकर धर्म के आधार पर आरक्षण दिया। नये वक्फ़ कानून को उन्होंने गरीब और पसमांदा मुस्लिमों, महिलाओं, खासकर विधवाओं, बच्चों आदि के लिये लाभप्रद बताया। इसे ही पीएम ने 'असली सामाजिक न्याय' बतलाया। वैसे उनका कांग्रेस से सवाल करना कहीं अधिक मज़ेदार है कि पार्टी का अध्यक्ष मुस्लिम क्यों नहीं है? यदि अध्यक्ष ही हितैषी होने का पैमाना है तो मानना होगा कि कांग्रेस दलित हितैषी तो है क्योंकि मल्लिकार्जुन खरगे दलित हैं। भाजपा को अपना अध्यक्ष किसी मुस्लिम को बनाकर बतलाना चाहिये कि वह मुस्लिमों की हितैषी है।
जो भी व्यक्ति मोदी के शासनकाल को ध्यान से देख रहा है वह जानता है कि मोदी की उपरोक्त बातों में कितनी सच्चाई है। हवाई चप्पल वालों को हवाई जहाज की सुविधा पहले ही अन्य जुमलों की तरह एक सुपर फ्लॉप वादा साबित हो चुका है क्योंकि इन दिनों हवाई यात्रा करना उच्च मध्यवर्गीय लोगों के लिये भी सम्भव नहीं रह गया है। वक्फ़ पर नए कानून का देश भर में होता विरोध बतला रहा है कि मुस्लिम उसे अपने हित में कतई नहीं मान रहे हैं। वे यह भी देख रहे हैं कि केन्द्र सरकार या उसके किसी भी राज्य की सरकार में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है। बहरहाल, मुख्य मुद्दे पर आयें तो यह ऐतिहासिक सच्चाई है कि अंबेडकर को यदि गांधी और नेहरू का समर्थन न होता तो वे कानून मंत्री नहीं बनाये जाते। उनके बनाये संविधान के मसौदे को संविधान सभा तथा संसद में स्वीकृत कराने में नेहरू का प्रमुख योगदान था जबकि आरएसएस व हिन्दू महासभा ने इसका विरोध किया था।
मोदी का अंबेडकर तथा संविधान के प्रति प्रेम दरअसल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के चलते उमड़ा है। भाजपा और उसके नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस का क्रमश: 370 व 400 सीटों का लक्ष्य इसलिये अधूरा रह गया क्योंकि जनता को संकेत मिल गये थे कि भाजपा संविधान को बदलने के लिये पूर्ण बहुमत के लायक सीटें चाहती है। इसलिये भाजपा 303 से 240 पर उतर आई और दो दलों (जनता दल यूनाइटेड व तेलुगु देसम पार्टी) की बैसाखियों पर खड़ी है। मोदी व भाजपा को अंबेडकर और संविधान की ताकत का पता चल चुका है। लगता है कि कांग्रेस का 'जय बापू जय भीम जय संविधान' का नारा भी असर करता दिखाई दे रहा है।